कोरोना मरीजों के लिए बेड के दावों पर घिरते ही केजरीवाल ने मीडिया के लिए जारी किया भारी-भरकम विज्ञापन
सुमन कुमार
सरकारें अपनी करनी छिपाने के लिए मीडिया का मुंह बंद करने के लिए हर संभव हथकंडा अपनाती हैं। दशकों से अलग-अलग सरकारें ऐसा करती आई हैं और लगता है कि अलग किस्म की राजनीति करने का दावा करके सत्ता में आई अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी की दिल्ली सरकार भी इस मामले में कोई अलग नहीं है। दरअसल अरविंद केजरीवाल और उनके मंत्री पिछले कुछ समय से लगातार ये दावा करते आए हैं दिल्ली सरकार ने दिल्ली के कोरोना मरीजों के लिए 30 हजार बेड का इंतजाम कर रखा है और दिल्ली वालों को घबराने की कोई जरूरत नहीं है। एक से अधिक मंचों पर दिल्ली सरकार के प्रतिनिधियों ने इस बारे में दावा किया।
हालांकि कुछ दिनों पहले इस दावे की हवा तब निकल गई जब दो लोगों ने इस बारे में दिल्ली हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर दिल्ली सरकार से ये जवाब मांगा गया कि असल में दिल्ली के अस्पतालों में कोरोना मरीजों के लिए कितने बिस्तर हैं। इस पीआईएल को दायर करने वालों ने जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस सुब्रह्मण्यम प्रसाद की पीठ को जानकारी दी कि दिल्ली सरकार ने कोविड मरीजों के लिए अस्पतालों में सिर्फ 3150 बेड की व्यवस्था की है जो बीमारी के बढ़ते मामलों को देखते हुए नाकाफी है। ये पीआईएल डॉ. एन प्रदीप शर्मा व हर्ष कुमार शर्मा ने दायर की थी।
हाइकोर्ट में हलफनामे के जरिये दी गई इस जानकारी ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के दावे की हवा निकाल दी है। दिल्ली सरकार का दावा है कि उसने कोरोना संक्रमित मरीजों के लिए 30 हजार बेडों की व्यवस्था की हुई है। हाल ही में दिल्ली सरकार द्वारा दिए गए विज्ञापनों में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दावा किया है कि कोविड-19 के मरीजों के लिए 30 हजार बेडों की व्यवस्था कर ली गई है। इसमें 8 हजार बेड अस्पतालों में, 12 हजार होटलों तथा 10 हजार बेड बैंकेट हॉल व धर्मशालाओं में बनाए गए हैं। दूसरी ओर हाईकोर्ट में दिए गए जवाब से साफ है कि अस्पतालों में 8 हजार बेड होने की बात भी झूठ ही थी। केजरीवाल सरकार उन होटलों और बैंकेट हॉल तथा धर्मशालाओं की भी सूची जारी करने में विफल रही है जहां उसने कथित रूप से 22 हजार बिस्तर की व्यवस्था करने का दावा किया है।
मगर कहानी में मोड़ इसके बाद आता है। दरअसल दिल्ली सरकार के दावे और उसकी हकीकत को मीडिया में वो कवरेज नहीं मिली जो आमतौर पर ऐसे किसी भी घोटाले में मिलती है। देश के कई न्यूज चैनलों पर वरिष्ठ पद पर काम कर चुके वरिष्ठ पत्रकार चंद्र प्रकाश कहते हैं कि ये दरअसल मीडिया और एक सरकार के बीच नेक्सस का शानदार उदाहरण है जहां खबर दबाने के बाद सरकार मीडिया घरानों के लिए विज्ञापन जारी करती है। इस मामले में भी यही देखने को मिला और दिल्ली सरकार ने 29 मई को दिल्ली के बड़े मीडिया घरानों को तीन-तीन पन्ने के भारी-भरकम विज्ञापन जारी कर दिए। कमाल की बात ये है कि इन विज्ञापनों में लोगों को ये सिर्फ ये जानकारी दी गई कि आइसोलेशन में रहने के लिए उन्हें क्या कदम उठाना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए।
दिल्ली सरकार द्वारा 29 मई को अखबारों को जारी किया गया विज्ञापन
ये सारी ऐसी जानकारियां हैं जिन्हें आज देश का बच्चा बच्चा जानता है क्योंकि हर टीवी चैनल, हर तरह का मीडिया पिछले तीन महीने से यही जानकारियां लोगों के बीच पहुंचा रहा है। चंद्र प्रकाश कहते हैं कि ये दरअसल सरकार द्वारा अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने का सटीक उदाहरण है और दिल्ली सरकार तीन पेज विज्ञापन देकर यही संदेश लोगों तक पहुंचाना चाहती है कि कोरोना हो जाए तो घर में आइसोलेशन में रहो क्योंकि सरकार के पास कोई व्यवस्था नहीं है।
दिल्ली के इन अस्पतालों में चल रहा है कोविड-19 का इलाज
कोविड-19 के इलाज के लिए दिल्ली सरकार के सात अधिकृत अस्पतालों में सरकारी अस्पताल के तहत लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल (2000) बेड और राजीव गांधी सुपर स्पेशलिटीज हॉस्पिटल (500) और आरएमएल में 137 बेड में कोरोना का इलाज हो रहा है। वहीं प्राइवेट अस्पताल में सर गंगा राम हॉस्पिटल (42) बेड, इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल (50) बेड, साकेत का मैक्स हॉस्पिटल (108) बेड, महा दुर्गा चैरिटेबल ट्रस्ट हॉस्पिटल (100) बेड और सर गंगाराम सिटी हॉस्पिटल (120) बेड शामिल है। इसके अलावा तीन और प्राइवेट अस्पतालों को मंजूरी दी गई है जिनमें शालीमार बाग का फोर्टिस हॉस्पिटल, रोहिणी का सरोज मेडिकल इंस्टीट्यूट और द्वारका का खुशी हॉस्पिटल शामिल है। सभी में 50-50 आइसोलेशन बेड हैं। वहीं दिल्ली सरकार ने सभी 117 निजी अस्पताल/नर्सिंग होम जिनमें बेड़ों की 50 या उससे ज्यादा है, उन्हें 20 प्रतिशत बिस्तर कोविड-19 के मरीजों के लिए आरक्षित करने के आदेश दिए।
क्या कहता है विपक्ष
इस मामले में भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश महामंत्री कुलजीत चहल कहते हैं कि मुख्यमंत्री केजरीवाल दिल्ली की मरीजों से अधिक विज्ञापनों पर ध्यान दे रहे हैं। अस्पतालों में मरीजों के टेस्ट नहीं हो रहे, उन्हें इलाज के लिए बेड तक उपलब्ध नहीं। मुख्यमंत्री की प्राइवेट अस्पतालों के साथ सांठ गांठ है और इसलिए दिल्ली में निजी अस्पतालों को कोरोना का इलाज करने की छूट दी गई है। ये निजी अस्पताल एक-एक कोरोना संक्रमित मरीज से सामान्य इलाज के नाम पर लाखों रुपये चार्ज कर रहे हैं।
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